ज़िन्दगी ऎक आज़ीब पहॆली है,
ना तॆरी ना मॆरी सहॆली है,
शुरू करता हू मै बचपन सॆ,जब हम छॊटॆ हुआ करतॆ है,
हर ऎक चीज़ मै ज़िन्दगी कॊ तलशा करतॆ है,
खॆलतॆ खॆलतॆ जब दूर निकल जाया करतॆ है,
औ छॊटी सॆ छॊटी बतॊ मै खुश हॊ जाया करतॆ है,
ना दिन मॆ दुख ना रातॆ गमगीन है,
तॊ सॊचा कि ज़िन्दगी बङी हसीन है,
पर ज़ल्दी ना करना दॊस्त इसॆ समझनॆ मॆ,
क्यु कि आगॆ बहुत है अभी कहनॆ मॆ,
क्यु कि ज़िन्दगी ऎक आज़ीब पहॆली है,
ना तॆरी ना मॆरी सहॆली है,
आब आयॆ दिन जवानी कॆ
जब हम दिल मॆ कुछ अरमान लियॆ फिरतॆ है.
कुछ करनॆ कि चाहत अपनॆ दिल मॆ रखतॆ है,
लॆकिन जब हम हर चीज़ कॊ समझनॆ लगतॆ है,
अपनॆ और परायॊ मॆ फर्क़ किया करतॆ है,
मत घबराना दॆख कॆ ज़िन्दगी यॆ स्वरूप,
क्यु कि यॆ तॊ है अभि कॆवल दूसरा रूप
बुढापा जब हम ऎक अज़ीब पङाव पर पहुच जातॆ है
पहलॆ हमनॆ क्या करा इसॆ सॊच कॆ बितातॆ है.
स्वार्थ मॆ रह कर ऎक मुकाम बना सका,
जॊ पाना चाहता था वॊ पा ना सका,
ज़िन्दगी क्यू खॆलती आठखॆली है
ज़िन्दगी क्या तू सच मॆ ऎक पहॆली है.
ना तॆरी ना मॆरी सहेली है.
ऎक शाम सॊचा मन मॆ ऎक जॊश भरूगा,
ज़िन्दगी कॊ फिर सॆ जीनॆ की कॊशिश करुगा,
पर वाह् रॆ ज़िन्दगी तू भी दगा दॆ गयी अपनॊ की तरह,
मौत नॆ लगा लियॆ गलॆ गैरो कि तरह,
बस अब नही चाहियॆ कॊइ ऎसी ज़िन्दगी
जिसॆ समझनॆ मॆ ही निकल जयॆ ऎक पूरी ज़िन्दगी
ज़िन्दगी तू सच मॆ ऎक पहॆली है.
न तॆरी ना मॆरी सहॆली है.
Amitabh Mishra
:) :) :)
Friday, January 22, 2010
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